शुक्रवार, 28 सितंबर 2018

महिलाओं पर हिंसा 1


महिलाओं पर हिंसा और उनके साथ भेद भाव तो मानव इतिहास में आदिम काल को छोड़कर लगातार होता आया है. लेकिन 1990 के दशक से स्त्रियों पर बर्बर, जघन्य जानलेवा हमलों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है. तेजाब फेंकने, बलात्कार, हत्या, अपहरण, दूसरे धर्म या जाति में विवाह के कारण परिवार द्वारा हत्या, पंचायतों के स्त्री विरोधी फरमान, साम्प्रदायिक और जाति आधारित हिंसा में महिलाओं और बच्चियों पर हमले, शादी के नाम पर औरतों का व्यापार, संगठित सेक्स रैकेट, समेत सभी अपराधों में कई गुना बढ़ोतरी हुई है. महिला हिंसा के मामलों मै संख्यात्मक बढ़ोतरी ही नहीं बल्कि हिंसा की विभीषता और बर्बरता में भी वृद्धि हुई है. जब भी कोई महिला हिंसा की बड़ी वारदात होती है चारों और से कानून व्यवस्था पर सवाल उठाने लगते हैं, कड़े कानून बनाने ,चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात करने के प्रस्ताव आने लगते हैं, महिलाओं की ड्रेस, शिक्षा , घर से अकेले निकलने पर सवाल खड़े होने लगते हैं. महिलाओं को ही हिंसा के लिए जिम्मेदार बताना, या महिलाओं पर बढ़ रही हिंसा को कानून - व्यवस्था से जोड़ना समस्या का अति सरलीकरण है. गंभीर विचार का विषय यह है कि 90 के दशक से, जब से उदारीकरण,निजीकरण,और वैश्वीकरण की आर्थिक नीतियां देश में लागू की गयी है, तभी से गरीबी व् बेरोजगारी बढी है. यही नहीं मानव तस्करी, मानव अंग तस्करी,वैश्यावृत्ति,जुआ घर या केसीनो,और ड्रग्स जैसे समाज विरोधी कारोबार में बहुत वृद्धि हुई है. संगठित क्षेत्र में रोजगार की जगह संविदा, ठेका , और मानदेय आधारित रोजगार, जिसमे ना रोजगार की सुरक्षा है ना ही कोई सामाजिक सुरक्षा ने बहुत बड़ी आबादी को जोखिम में डाल दिया है . इसी अरसे में समाज में जातीय, साम्प्रदायिक और महिला हिंसा में भी बेतहाशा वृद्धि हुई है।महिलाओं पर लगातार बढती हिंसा, घटता लिंग अनुपात हमारी सामजिक-आर्थिक -राजनीतिक ढाँचे में अन्तर्निहित अंतर्विरोधों के साथ-साथ सामंती-पूंजीवादी-साम्राज्यवादी नीतियों के प्रभाव का
परिणाम है.
                    स्त्रियों पर बढ़ती हिंसा और स्त्री हिंसा मुक्त समाज की स्थापना की संभावना के वर्तमान हालात का विश्लेषण करने से पहले यह भी जरूरी है कि हम मानव समाज के विकास की पृष्ठ भूमि में परिवार,विवाह, स्त्री - पुरुष सम्बन्ध, इसके इतिहास और महिलाओं की बदलती स्थिति के बारे में संक्षिप्त सा लेकिन गहराई से जायजा लें.

प्रारंभिक समाज में लिंगभेद आपने मानव समाज के विकास की कहानी जरूर पढी और समझी होगी। में आपकी याद दहानी के लिए एक बार फिर इसे दोहरा रही हूँ. विकास क्रम में जब मानव जीवन अस्तित्व में आया उन दिनों मानव समूह में रहता था, कंद-मूल-फल और शिकार द्वारा जानवरों का मांस ही उसका मुख्य आहार था. पत्थर के हथियार थे और अकेले शिकार करना आसान ना था, इसीलिये मानव समूह में रहता था. यह मानव समाज के विकास का सबसे आरंभिक दौर था, जिसे आदिम काल जाता है. इस वक्त समाज में स्त्री - पुरुष के आधार पर या अन्य किसी भी प्रकार का ऊंच- नीच का किसी भी प्रकार का कोई भेद- भाव ना था. स्त्री-पुरुषों से बना यह कबीला सामूहिक रूप से शिकार करता था और शिकार से प्राप्त भोजन का सामूहिक उपयोग भी करता था. उन दिनों स्त्री पुरुष दोनों मिलकर शिकार करते थे, काम का बंटवारा था भी तो इतना ही कि बीमार व् बूढ़े कंद -मूल-फल इकट्ठे करने चले जाते थे . शिकार की तरह आदिम खेती व् कंद -मूल-फल संग्रह को मान्यता प्राप्त थी और किसी भी काम को छोटा नहीं समझा जाता था. स्त्री को पूरी तरह स्वतंत्रता और समानता प्राप्त थी. सामूहिक यौन संबंधों के कारण पिता की जानकारी संभव ना थी, अतः संतान को माँ के नाम से जाना जाता था. कबीले में उत्तराधिकार का अधिकार भी माँ के रूप में स्त्री को ही प्राप्त था. आज भी देश के बहुत से हिस्सों में आदिवासी समाजों में मातृ प्रधान कबीलों का अस्तित्व है. प्रकृति के साथ संघर्ष करते हुए मानव को नये-नये अनुभव हुए,और उत्पादन के औजारों में भी बदलाव आया. धनुष - वाण और धातु के प्रयोग ने समाज की संरचना बदलने में बड़ी भूमिका निभायी. पशुपालन ने तो समाज में बहुत बड़ा बदलाव ला दिया.पशुपालन अब जीविका का एक अन्य प्रमुख साधन बन गया. धीरेधीरे खेती शुरू हुई और पशुपालन उत्पादन का स्रोत बना. अब कबीले घुमक्कड़ी के स्थान पर एक ही स्थान पर वास करने लगे. कबीलों के बीच युद्धों में विजयी कबीले हारे हुए कबीले के पशु, शस्त्र और स्त्री-पुरुषों कब्जा कर लेते थे. पशु जीते हुए कबीले की अतिरिक्त संपत्ति में शामिल हो जाते थे,और दास खेती और अन्य उत्पादन के कामों में लग जाते थे. अब ज्यादा अतिरिक्त संपत्ति इकट्ठा होने लगी. अब धातु के बने अस्त्र-शास्त्रों से शिकार भी आसान हुआ और कबीलों के पास अब इतना उत्पादन होने लगा कि उनकी जरूरत पूरी होने के बाद भी बच जाता था. इस अतिरिक्त उत्पादन ने विशालकाय
कबीलों को तोड़ कर कुटुंब या युग्म परिवार को जन्म दिया. कुटुंब के स्त्री पुरुषों के बीच युग्म में यौन सम्बन्ध होने लगे. स्त्री और पुरुष युग्म के बीच ये सम्बन्ध स्थायी और कठोर नहीं थेस्त्री पुरुष एक दूसरे को छोड़कर आसानी से अलग हो सकते थे. सामाजिक उत्पादन में स्त्री - पुरुष का बराबर का योगदान था. इसीलिये स्त्री आर्थिक रूप से सुरक्षित व् सामाजिक रूप से प्रतिष्ठित थी. युग्म विवाह टूटने पर शिकार के हथियार पुरुषों की संपत्ति तो खेती के अन्न और घरेलु चीजों पर स्त्री का अधिकार बना रहता था.

उत्पादन में पुरुषों की भूमिका बढ़ने लगी. अतिरिक्त संपत्ति की हिफाजत के लिए स्त्रियों का प्रयोग किया जाने लगा. उत्तराधिकार के नियम स्त्री वंशावली पर आधारित थे, पुरुषों को यह मंजूर ना था. अब उत्तराधिकार के नियम बदले गए, स्त्री के स्थान पर पुरुष को अब मुखिया माना जाने लगा. आगे उत्तराधिकार परिवार की स्त्री के स्थान पर पुरुष को दिया जाने लगापुरुष यह भी सुनिश्चित करना चाहता था कि उत्तराधिकार में संपत्ति उसी के अपने पुत्र को मिले, इसके लिए एकनिष्ठ विवाह शुरू हुए. स्त्री को घर में कैद कर दिया गया. स्त्री अपनी
प्रजनन क्षमता के कारण संतान को जन्म देती है,इसलिए वह स्वयं में एक संसाधन है, इसलिए स्त्री की यौनिकता पर नियंत्रण जरूरी था. पुरुष ने स्त्री के अपने ही पुत्र को संपत्ति का उत्तराधिकारी बनाने के लिए स्त्री को घर में कैद कर दिया. मातृवंशीय परिवार के स्थान पर पितृसत्तात्मक परिवार की स्थापना ने स्त्री को सामजिक श्रम में भागीदारी से वंचित कर दियाबराबरी, न्याय, समानता के मूल्य स्त्री के लिए बेमानी हो गए. सामाजिक श्रम से ही नहीं संपत्ति से भी वंचित होकर स्त्री मात्र एक शरीर, शिशु को जन्म देने वाले संसाधन में बदल गई, जिसका नियंत्रण पूरी तरह पुरुष के हाथ में गया, यही पितृसत्ता की शुरुआत